शमशान से घर
हरिश्चन्द्र घाट से शाम को आठ बजे निकला तो लगा जैसे मेरे पॉ को जकरण महसूस हो रही है २० फ़रवरी का वो दिन था उस दिन लग रहा था की जैसे सबकुछ बदला बदला सा नजर आ रहा था ,वो दिन मेरे लिए काफी निराशा जनक था मेरी बड़ी मम्मी का देहांत उस दिन हो गया था , मुझे लगता है की समशान से अच्छी पाठ शाला आज तक नहीं खुली है दुनिया की साडी रीती रिवाज वह ख़तम हो जाता है बार वह गया था सो मुझे काफी अजीब लग रहा था , उस मनोवृति को मैं आज तक नहीं भूल पाया हु और मैं भूलना भी नहीं चाहता हूँ।
No comments:
Post a Comment